गया
मकर संक्रांति के समय गया का मशहूर तिलकुट खूब बिकता है, लेकिन त्यौहार के बाद इसकी बिक्री बहुत कम हो जाती है। व्यापारियों का कहना है कि तिलकुट को अगर भौगोलिक संकेतक (GI) टैग मिल जाए, तो इसे पूरे साल देशभर में बेचना और लोकप्रिय बनाना आसान होगा।
बिहार राज्य मिष्ठान व्यवसायी संघ के कार्यवाहक अध्यक्ष और गया तिलकुट संघ के प्रमुख लालजी प्रसाद ने इस बारे में बताया कि 2022 में NABARD ने GI टैग के लिए आवेदन किया था, लेकिन अब तक मंजूरी नहीं मिली है।
बता दें कि तिलकुट को देशभर में अलग-अलग नामों से बेचा जाता है। जैसे चेन्नई में इसे तिलकुटम, मुंबई, दिल्ली, कोलकाता और उत्तर प्रदेश में गजक, और राजस्थान में तिलपट्टी कहा जाता है। तिलकुट बनाने में तिल, चीनी या गुड़ का इस्तेमाल होता है।
आजकल तिलकुट खवा, सूखे मेवे और नीरा के साथ भी बनाया जा रहा है ताकि इसकी पसंद बढ़ सके।
मकर संक्रांति के बाद तिलकुट की मांग घटने पर कई कारीगर दूसरे कामों की ओर रुख करते हैं। ये कारीगर त्यौहार के समय रोजाना 600 से 1200 रुपये कमाते हैं, लेकिन बाद में अनरसा और लाई जैसी मिठाइयां बनाकर अपना गुजारा करते हैं।
लालजी प्रसाद ने सुझाव दिया कि सरकार को GI टैग मिलने के बाद दिल्ली, मुंबई जैसे बड़े शहरों के बिहार एम्पोरियम में तिलकुट बेचने के लिए स्टॉल लगवाने चाहिए। मनपुर के दुकानदार अमन कुमार का कहना है कि तिलकुट बनाने वाले कारीगरों में से केवल 40% लोग बाद में अनरसा और लाई बनाने का काम करते हैं।